इसी संस्कार का चतुर्थ चरण है विशेष विवाह कर्म काण्ड।
2.
विवाह कर्म के प्रति समाज का दृष्टिकोण बदलता जा रहा है।
3.
विवाह के समय सप्तपदी क्रिया के बिना विवाह कर्म पक्का नहीं होता है।
4.
नान्दी श्राद्ध के प्रथम भी विवाह के लिए सामग्री तैयार होने पर अशौच प्राप्ति हो तो प्रायश्चित करके विवाह कर्म होता है ”
5.
उत्तरखण्ड में परम्परागत रूप से वृति कार्य दस कर्म प (ति से किये जाने का प्रचलन है, पर कुछ दलित पण्डित आर्य समाज प (ति से भी शादी विवाह कर्म करवा रहे हैं।